जलेबी हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो की औषधि के साथ साथ बहुत ही स्वादिष्ट मिष्ठान भी है जो काफी गुणकारी भी है ..
जलेबी का भारतीय नाम जलवल्लिका है। अंग्रेजी में जलेबी को स्वीट्मीट (Sweetmeet) और सिरप फील्ड रिंग कहते हैं।
जलेबी दो शब्दों से मिलकर बनता है। जल +एबी अर्थात् यह शरीर में स्थित जल के ऐब (दोष) दूर करती है।
शरीर में आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि एवं ऊर्जा में वृद्धि कर स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत करने में सहायक है।
मैदा, जल, मीठा, तेल और अग्नि इन 5 चीजों से निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है । जलेबी खाने से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाॅंच फनवाले शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है!
वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म जलेबी खावें ।
रोग निवारक जलेबी….
जो लोग सिरदर्द, माईग्रेन से पीड़ित हैं वे सूर्योदय से पूर्व प्रातः खाली पेट 2 से 3 जलेबी खानी चाहिए।
जलेबी खाकर तुरन्त पानी नहीं पीना चाहिए।
जलेबी पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए यह चमत्कारी ओषधि है। सुबह सुबह खाने से पांडुरोग दूर हो जाता है।
जिन लोगों के पैर की बिम्बाई फटने या त्वचा निकलने की परेशानी रहती हो हो वे 21 दिन लगातार जलेबी का सेवन करें।
जलेबी बनाने हेतु आवश्यक सामग्री:-
मैदा 900 ग्राम, उड़द दाल 50 ग्राम पानी में गला कर पीस कर 500 ग्राम मैदा में 50 ग्राम दही मिलाकर दो दिन पूर्व खमीर हेतु घोल कर रखे शेष मैदा जलेबी बनाते समय खमीर में मिलाये चाशनी बनाने के लिए शक्कर करीब 1 किलो 300-400 ML पानी में डालकर चाशनी बनाये। जलेेबी को बहुत स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में एक चम्मच नीबू का रस, केशर, गुलाबजल और केवड़ा भी मिला सकते हैं।
एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा।
धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।।
(आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश पृष्ठ ७४०)
अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली, पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय को तृप्त करने वाली होती है।
जलेबी का अविष्कार…
दुनिया में सर्वप्रथम जलेबी का अविष्कार किसने किया यह तो ज्ञात नहीं हो सका। लेकिन उत्तरभारत का यह सबसे लोकप्रिय व्यंजन है। भारत की जलेबी अब अंतरराष्ट्रीय मिठाई है।
300 वर्ष पुरानी पुस्तकें “भोजन कटुहला” एवं संस्कृतमें लिखी “गुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन है।
जलेबी का आदिकालीन भारतीय नाम कुण्डलिका बताया है। वे बंजारे बहुरूपिये शब्द और रघुनाथकृत “भोज कौतूहल” नामक ग्रन्थ का भी हवाला देते हैं। इन ग्रंथों में जलेबी बनाने की विधि का भी उल्लेख है। जलेबी रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे जल-वल्लिका नाम भी मिला है।
जैन धर्म का ग्रन्थ “कर्णपकथा” में भगवान महावीर को जलेबी नैवेद्य लगाने वाली मिठाई माना जाता है।
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