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विजय की यह छोटी सी, लेकिन प्यारी बात ने सुनीता का दिल छू लिया

सुनीता बादाम छीलते हुए दो बादाम चुपके से अपने मुँह में डाल चुकी थी। जब वह विजय के लिए दूध के साथ बादाम लेकर गई, तो उसकी सासू माँ का गुस्सा फूट पड़ा। सासू माँ ने झट से गिना कि पूरे बादाम नहीं थे, और नाराज़ होते हुए बोलीं, "मैंने पूरे बादाम भिगोए थे, फिर विजय को कम क्यों दे रही हो?" सुनीता की घबराहट उसकी आवाज़ में साफ झलक रही थी। उसने कांपते हुए कहा, "सासू माँ, छीलते वक्त दो बादाम नीचे गिर गए थे, अब कैसे देती उन्हें?"

सासू माँ की निगाहें जैसे सुनीता को दोषी करार दे रही थीं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, "तुम्हारे मायके से बादाम की बोरी तो आती नहीं, जो यूँ ही गिराती रहोगी।" सुनीता अंदर ही अंदर झूठ छुपाते हुए रसोई में बर्तन रखने चली गई। उसकी आंखों में मायके की यादें ताजा हो गईं, जहां कभी ऐसा भेदभाव नहीं था। उसकी सासू माँ के घर में, ताकत और पोषण की चीजें केवल पुरुषों के लिए मानी जाती थीं। सासू माँ का मानना था कि पुरुष ही मेहनत करते हैं, क्योंकि उन्हें बाहर काम करना पड़ता है, जबकि औरतों के काम को मेहनत के रूप में नहीं देखा जाता था।


सुनीता अकेली महिला थी, जिसे घर में 'औरत' का दर्जा मिला था। वह सोचने लगी कि अगर विजय उसका साथ न देते, तो उसकी स्थिति और कठिन हो जाती। दिनभर घर के काम में कब समय गुजर जाता, उसे पता भी नहीं चलता।


रात को खाना बनाकर और बर्तन धोने के बाद, जब सुनीता कमरे में आई, तो विजय उसका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही वह अंदर आई, विजय ने उसे प्यार से गले लगाया और मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ।" उन्होंने बादाम का एक पैकेट सुनीता के हाथ में थमाते हुए कहा, "तुम्हें भीगे बादाम बहुत पसंद हैं, तो अलग से भिगो कर खा लिया करो।"


विजय की यह छोटी सी, लेकिन प्यारी बात ने सुनीता का दिल छू लिया। उसके अंदर का सारा तनाव जैसे बह गया हो। यह छोटे-छोटे प्यार भरे पल सुनीता के दिल को एक सुकून और आत्मीयता से भर देते थे, जैसे भीगे बादाम उसकी आत्मा को भी ताजगी और प्यार से भिगो रहे हों।

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