रूपेश सिंह हत्याकांड के बाद बिहार की कानून व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है. अपराधी अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं और सूबे के मुखिया नीतीश कुमार से लेकर DGP एस के सिंघल तक हर कोई बस यही दावा कर रहा है कि सब कुछ बढ़िया है. नीतीश कुमार से बिहार में बढ़ते अपराध पर जब भी सवाल किए जाते हैं तो उनके पास सिर्फ एक ही जवाब होता है- '2005 से पहले क्या स्थिति थी?'
नीतीश कुमार 15 साल सरकार चलाने के बाद भी अपनी उपलब्धियां बताने से ज्यादा ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि उनसे पहले लालू-राबड़ी शासन काल में हालात बदतर थे. कुछ दिनों पहले ही मीडिया के सवालों पर भड़के नीतीश कुमार ने दावा किया कि अपराध के मामलों में बिहार देश में 23वें नंबर पर आता है. लेकिन NCRB का डेटा कहता है कि 2019 में देश भर में हुए अपराधों में से 5.2 फीसदी अपराध बिहार में दर्ज हुए. इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के बाद बिहार का ही नंबर आता है. यानी नीतीश कुमार का दावा झूठा साबित होता दिख रहा है.
इतना ही नहीं, नीतीश कुमार हर बार ये दावा करते हैं कि लालू-राबड़ी के शासनकाल के मुक़ाबले उनकी सरकार में अपराध कम हुए हैं. हालांकि, नीतीश कुमार के दावों के इतर बिहार पुलिस के आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं. बिहार पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर 2004 (लालू काल) से लेकर 2019 (नीतीश काल) तक के आपराधिक आंकड़े मौजूद हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार में लालू यादव की सरकार के आखिरी साल 2004 में अपराध के कुल 1,15,216 मामले दर्ज हुए थे, जबकि नीतीश कुमार की सरकार में 15 साल बाद 2019 में अपराध के आंकड़े घटने की बजाय ढ़कर 2,69,096 हो गए, यानी दोगुने से भी ज्यादा.
आंकड़े बता रहे हैं कि नीतीश सरकार में लालू यादव के शासनकाल के मुकाबले अपराध दोगुने से भी ज़्यादा बढ़े हैं लेकिन नीतीश कुमार अपनी सरकार में बेहतर कानून व्यवस्था के दावे कर रहे हैं.
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