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थोड़ा अजीब लग रहा है, लेकिन ठीक है," सान्या ने मुस्कुराते हुए कहा

सर्दियों का मौसम था, हड्डियों तक को कंपा देने वाली ठंड। शुक्र था कि ऑफिस का काम एक दिन पहले ही निपट गया था। विवेक का दिल्ली से मसूरी आना सार्थक हो गया था, और अब वह निश्चिंत था कि उसके बॉस उससे खुश होंगे।



विवेक अब खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था। वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था और उसकी दो छोटी बहनें थीं। पिता रिटायर हो चुके थे और घर की ज़िम्मेदारियाँ अब विवेक के कंधों पर थीं। वह बचपन से ही महत्वाकांक्षी रहा है। पढ़ाई खत्म होते ही उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी। आकर्षक व्यक्तित्व और बेहतरीन संवाद कौशल के कारण लोग जल्दी ही उससे प्रभावित हो जाते थे। कई लड़कियों ने उससे दोस्ती करने की कोशिश की, लेकिन अभी वह इन सब चीज़ों में उलझना नहीं चाहता था।


विवेक ने सोचा था कि मसूरी में उसे दो दिन लगेंगे, लेकिन यहाँ तो काम एक ही दिन में निपट गया। उसने सोचा, "क्यों न कल मसूरी घूम लिया जाए।" यह सोचते हुए वह आराम से गरम कंबल में लिपटकर सो गया।


अगले दिन वह मसूरी के मॉल रोड पर खड़ा था। लेकिन उसे पता चला कि आज टैक्सी और बसों की हड़ताल है।


"ओह, हड़ताल भी आज ही होनी थी!" विवेक सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी ड्राइवर उसके पास आकर फुसफुसाया, "साहब, मसूरी घूमना है?"


"हां, लेकिन आज तो हड़ताल हो गई है," विवेक ने निराशा से कहा।


"कोई दिक्कत नहीं साहब, मेरी टैक्सी है। आपको एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी। आप दोनों मसूरी घूम सकते हैं। आपको कोई आपत्ति तो नहीं?" ड्राइवर ने पूछा।


"और कोई चारा नहीं दिख रहा। चलो, कहां है टैक्सी?" विवेक ने जवाब दिया।


ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी की ओर इशारा किया, जहां एक लड़की खड़ी थी। विवेक ड्राइवर के साथ टैक्सी की ओर चल दिया।


"हैलो, मैं विवेक, दिल्ली से।" उसने लड़की से परिचय कराया।


"हैलो, मैं सान्या, लखनऊ से।" लड़की ने जवाब दिया।


"आज हमें टैक्सी शेयर करनी है, आप ठीक हैं न?" विवेक ने पूछा।


"थोड़ा अजीब लग रहा है, लेकिन ठीक है," सान्या ने मुस्कुराते हुए कहा।


दोनों टैक्सी में बैठ गए। ड्राइवर ने उनसे कहा, "सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत जगह धनौल्टी है। वहां सुबह से बर्फबारी हो रही है। क्या आप लोग वहां जाना चाहेंगे?"


विवेक ने सान्या की ओर देखा, उसकी भी नज़रें विवेक की ओर थीं। मौन स्वीकृति के साथ उन्होंने धनौल्टी चलने का फैसला किया।


रास्ता काफी रोमांचक था, पहाड़ों के संकरे मोड़ और गहरी खाइयों से गुजरते हुए। विवेक के मन में सान्या को लेकर कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन वह किसी अजनबी से इतनी जल्दी बातें करने में हिचकिचा रहा था। सान्या की गहरी, सुंदर आँखें उसे बार-बार उसकी ओर देखने पर मजबूर कर रही थीं।


दोनों थोड़ी-थोड़ी बातें करते हुए पहाड़ों की सुंदरता का आनंद ले रहे थे। रास्ता संकरे और खतरनाक मोड़ों से गुजर रहा था। बीच-बीच में टैक्सी जब रुकती, तो नीचे की गहरी खाई देखकर दोनों की सांसे थम जातीं। विवेक को यह एहसास हो रहा था कि भले इंसान कितनी भी ऊंचाइयों पर क्यों न पहुंच जाए, नीचे गिरने का डर हमेशा बना रहता है।


"ड्राइवर साहब, धीरे चलाइए," सान्या ने हल्की सी घबराहट के साथ कहा।


"आप परेशान मत होइए, मैडम। गाड़ी पर मेरा पूरा कंट्रोल है," ड्राइवर ने आश्वासन दिया। "यहां थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोक रहा हूँ। यहाँ से चारों ओर का दृश्य बहुत सुंदर दिखता है।"


गाड़ी से बाहर निकलते ही हाड़ कंपा देने वाली ठंड का एहसास हुआ। चारों ओर कोहरे और धुएं जैसे बादल उड़ते हुए नजर आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे बादलों के बीच खड़े होकर आंखमिचौली खेल रहे हों।


"इस ठंड में अगर एक कप चाय मिल जाए, तो मजा आ जाएगा," सान्या ने मुस्कुराते हुए कहा।


"पास में ही एक चाय का स्टॉल दिख रहा है। चलो, वहीं चाय पीते हैं," विवेक ने जवाब दिया।


चाय के कप की गरमाहट ने उन्हें राहत दी। धनौल्टी के रास्ते में देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ बर्फ से ढके हुए दिख रहे थे, मानो प्रकृति ने सफेद चादर बिछा दी हो। चारों ओर का दृश्य वाकई मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। जब तक वे धनौल्टी पहुंचे, बर्फ की परतें और मोटी हो चुकी थीं। चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़ और पेड़ किसी स्वप्निल दृश्य जैसा प्रतीत हो रहे थे।


"सर, आज यहां से वापस लौटना संभव नहीं होगा। आप दोनों को यहीं किसी गेस्टहाउस में रुकना पड़ेगा," ड्राइवर ने सलाह दी।


"यह भी ठीक है, यहाँ का सौंदर्य और बेहतर तरीके से देख पाएंगे," विवेक ने सान्या की ओर देखते हुए कहा।


"गेस्टहाउस में फिलहाल एक ही कमरा खाली है," रिसेप्शनिस्ट ने कहा। "आपको एक ही रूम शेयर करना होगा।"


"क्या? रूम शेयर करना पड़ेगा?" दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, लेकिन कोई और विकल्प न होने के कारण वे सहमत हो गए।


कमरा बड़ा था, और उसमें डबल बेड लगा हुआ था। विवेक ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, "हम बैड अलग-अलग कर लेते हैं और बीच में टेबल लगा लेते हैं।"


सान्या ने सहमति में सिर हिला दिया।


दोनों अपने-अपने बिस्तर पर बैठे थे, लेकिन नींद किसी की आंखों में नहीं थी। विवेक ने हिम्मत जुटाकर सान्या से पूछा, "तुम मसूरी क्या करने आई हो?"


सान्या अब तक उससे थोड़ा सहज हो चुकी थी। उसने जवाब दिया, "मैं दिल्ली में रहती हूँ, सरोजिनी नगर में।"


"अरे वाह, मैं आईएनए में रहता हूँ," विवेक ने उत्साहित होकर कहा।


"मैंने अभी पढ़ाई पूरी की है। मेरे पापा अब नहीं हैं और मम्मी के कंधों पर हम तीन बहनों की जिम्मेदारी है। मैंने सोचा था कि जल्दी ही जॉब करके मम्मी का भार कम करूंगी, लेकिन अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है।"


"दिल्ली में जॉब के लिए इंटरव्यू दिया था, उन्होंने सैकंड राउंड के लिए मसूरी बुलाया है। सिलेक्शन तो हो गया है, लेकिन कंपनी के शर्तें मुझे ठीक नहीं लग रही हैं। समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं।"


"तुम इतनी टेंशन क्यों ले रही हो? अगर जॉब पसंद नहीं आ रही तो मत करो। तुम्हारे पास टैलेंट है, तो कहीं और नौकरी मिल जाएगी। वैसे, मेरी कंपनी में नई वैकेंसी निकली है। अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिए कोशिश कर सकता हूँ।"


"सच में? मैं तुम्हें अपना सीवी भेज दूंगी।" सान्या ने मुस्कुराते हुए कहा।


"शायद, किस्मत ने हमें मिलाया ही इसलिए हो कि मैं तुम्हारे काम आ सकूं," विवेक के मुंह से अचानक यह बात निकल गई। सान्या ने एक नजर उसकी ओर देखा, फिर हल्के से मुस्कुरा दी।


सर्द रात में बाहर बर्फ गिर रही थी और कमरे के भीतर हल्की गरमाहट थी। विवेक ने सान्या के लिए कॉफी बनाई और उसके हाथों में कप थमाते हुए कहा, "यह लीजिए, गर्म कॉफी।"


दोनों के हाथ जब हल्के से छुए, तो एक अनकहा आकर्षण महसूस हुआ। उनकी नजरें एक बार फिर मिलीं, और इस बार विवेक ने हिम्मत करते हुए सान्या के होठों पर हल्का सा चुंबन रख दिया। दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए, और सर्द रात की ठंडक अब गरमाहट में बदल गई।


रात कब बीत गई, यह पता ही नहीं चला। सुबह होते ही जब पेड़ों पर जमी बर्फ धीरे-धीरे पिघलने लगी, तो ऐसा लगा मानो पूरी दुनिया में संगीत बज रहा हो। दोनों एक नई ताजगी और ऊर्जा के साथ जागे, और बिना कुछ कहे मुस्कुरा दिए। यह सफर उनके लिए यादगार बन गया था, एक नए रिश्ते की शुरुआत के साथ।

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