शादी फ्री सेक्स का लाइसेंस,पत्नी के शरीर पर पति का हक है, और पति के शरीर पर पत्नी का
चाहे मेरी मां हो, बहन हों या दोस्त हों सभी ने आजीवन यही सलाह दी थी, और शादी के बाद मैने भी इसे बखूबी निभाया है
दीपक जी से मेरी ऑनलाइन मुलाकात के बाद जब हम दोनों ने अपनी प्रोफाइल घर पर दिखाई, तो परिवार को सब कुछ अच्छा लगा। दीपक जी ने मेरा नंबर लिया, और हमारी बातचीत शुरू हो गई। पहले तो मुझे लगा कि दीपक जी थोड़े शर्मीले हैं, लेकिन समय के साथ उनकी बातों ने मुझे अचंभित कर दिया। उनकी बातें इतनी सुलझी और स्पष्ट थीं कि मुझे खुद शर्म आने लगी।
एक दिन उन्होंने मुझसे पूछा, "तुम्हें अपने पति से क्या उम्मीदें हैं?" मैंने लंबी चौड़ी लिस्ट गिना दी—अच्छा दिखने वाला होना चाहिए, पैसे वाला होना चाहिए, अच्छी कमाई हो ताकि किसी भी चीज के लिए सोचना न पड़े, मेरा ख्याल रखे, स्थिरता हो, और मुझसे प्यार करे।
फिर मैंने पूछा, "आपको अपनी पत्नी से क्या उम्मीदें हैं?" उन्होंने सीधा सा जवाब दिया, "बस इतना कि वो हर परिस्थिति में मेरा साथ दे और परिवार की इज्जत करे।"
उनकी इस सरल बात ने मुझे कुछ देर के लिए शर्मिंदा कर दिया। मैंने इतनी सारी भौतिक चीजों की उम्मीद जताई थी, जबकि उन्होंने सिर्फ साथ और सम्मान की बात की। मैंने उनसे पूछा, "आप यह नहीं चाहते कि आपकी पत्नी सुंदर दिखे?" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर मेरी पत्नी विपरीत परिस्थितियों में मेरा साथ नहीं देगी, तो उसकी सुंदरता का क्या फायदा?"
धीरे-धीरे उनकी इन बातों ने मेरा दिल जीत लिया, और हमारी अरेंज मैरिज धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगी।
शादी के बाद सब कुछ अच्छे से चल रहा था। जैसा कि मैंने घर के दोस्तों से सुना था, शादी फ्री अनलिमिटेड सेक्स का लाइसेंस है, उसी आधार पर मैंने भी अपनी जिंदगी जीना शुरू किया। मैं मानती हूँ कि अगर कोई स्त्री अपने पति को शारीरिक सुख देती है, तो वह उसका मुरीद हो जाता है। मैंने भी ऐसा अनुभव किया, लेकिन समय के साथ समझ में आया कि एक पुरुष की जरूरतें केवल शारीरिक नहीं होतीं।
मेरे पति होटल इंडस्ट्री में काम करते थे, और 2021 में महामारी के दौरान उनकी नौकरी चली गई। घर का माहौल बहुत ही नीरस और उदास हो गया था। हमारे पास जो बचत थी, उससे घर का खर्चा चल रहा था, लेकिन हर खर्च के बारे में 10 बार सोचना पड़ता था।
इस वक्त मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने पति से जो उम्मीदें रखी थीं, वह तो उन्होंने पूरी कीं, लेकिन क्या मैं उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी? अंदर से जवाब आया, "नहीं।" मैं उन्हें हर छोटी-छोटी बात पर कोसती, और पैसे की तंगी की वजह से मैं हमेशा चिढ़चिढ़ी रहती थी। यह सोचकर मुझे और भी आत्मग्लानि होने लगी।
एक रात मैं पति के पास जाकर बैठी और उनसे कहा, "आप परेशान मत होइए, हम दोनों मिलकर कुछ न कुछ करेंगे।" मेरी यह बात सुनकर उनके चेहरे पर सुकून की झलक दिखाई दी। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि घर के पैसे मैं सही तरीके से मैनेज कर लूंगी, बस आप मुझ पर भरोसा रखें।
मैंने घर के फिजूल खर्चों पर रोक लगा दी। जहां संभव था, वहां कटौती की। खाने में हरि सब्जियों की जगह हमने राजमा, चना, और अनाज को बढ़ाया। साथ ही, सबसे जरूरी बात यह थी कि मैंने अपने पति को यह भरोसा दिलाया कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, मैं उनका साथ नहीं छोड़ूंगी।
हमारी शारीरिक संबंधों की स्थिति पहले जैसी नहीं थी, लेकिन जब मेरे पति को यह एहसास हुआ कि दुनिया चाहे जैसी भी हो, उनकी पत्नी हमेशा उनके साथ खड़ी रहेगी, तो इस भरोसे ने हमारे रिश्ते को और मजबूत कर दिया।
महामारी खत्म होने के दो साल बाद उन्हें फिर से नौकरी मिली, लेकिन अब हमने जिंदगी को बेहतर और संतुलित बनाना सीख लिया था। पहले हम सिर्फ पति-पत्नी थे, लेकिन अब हम एक-दूसरे के सच्चे साथी और दोस्त बन गए थे। हमें अब यह भरोसा था कि चाहे कुछ भी हो जाए, हम एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।
आजकल की लड़कियाँ और उनके परिवार शादी के समय यह जरूर देखते हैं कि लड़का कितना कमाता है। वे अपनी बेटियों के लिए अच्छी लाइफस्टाइल और लड़के की मोटी कमाई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन शायद ही वे विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार होती हैं।
एक पुरुष जितना संवेदनशील होता है, उतना ही उसकी पत्नी को भी होना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि जीवन में परिस्थितियाँ कभी एक जैसी नहीं रहतीं—अच्छी और बुरी दोनों आती हैं। एक पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति के लिए एक स्तंभ बने और हर स्थिति में उसका साथ दे।
जब आप जीवन की हर परिस्थिति के लिए तैयार रहते हैं और अपने साथी के साथ खड़े रहते हैं, तो चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, जिंदगी हमेशा आनंदमय बन जाती है।
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