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त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद भाजपा में गुटबाजी तेज

भाजपा पंचायत चुनाव को लेकर करीब डेढ़ साल से तैयारी कर रही थी, लेकिन नतीजा उसकी उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत निकला। इसका बड़ा कारण अति आत्मविश्वास, संगठन स्तर पर कमजोरी, जनप्रतिनिधियों को लेकर जनता के बीच पैदा हो रही नाराजगी मुख्य कारण रहा। रही सही कसर प्रत्याशी चयन ने पूरी कर दी। सिफारिशों के दम पर ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतार दिए गए, जिनकी कोई पहचान क्षेत्र में नहीं थी। जनप्रतिनिधि भी उनके पक्ष में मजबूत माहौल नहीं बना पाए।

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद भाजपा में गुटबाजी और ज्यादा गहराने लगी है। मेरठ में जिला पंचायत चुनाव में मिली करारी हार का ठीकरा क्षेत्रीय कमेटी से लेकर जिला कमेटी ही नहीं जनप्रतिनिधियों और अन्य नेताओं पर भी फोड़ा जा रहा है।

अब एक-दूसरे के सिर फोड़ रहे ठीकरा 

हार के बाद प्रांतीय नेतृत्व अपने तरीके से मंथन कर रहा है। लेकिन स्थानीय स्तर पर एक-दूसरे के सिर इस हार का ठीकरा फोड़ा जा रहा है। जिसमें जनप्रतिनिधियों, जिला और पश्चिमी क्षेत्र इकाई तक पर आरोप लग रहे हैं। लगातार गोपनीय शिकायतें और उसके साक्ष्य भी आला कमान को भेजे जा रहे हैं। 


बदलाव की संभावना से इनकार नहीं 

विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा जुलाई तक जिले के साथ ही पश्चिमी क्षेत्र में कई बदलाव कर सकती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पश्चिमी क्षेत्र के कई जिलाध्यक्ष इस दौरान बदले जा सकते हैं तो कार्यकारिणी में भी बदलाव हो सकता है।

होमवर्क की रही कमी 

भाजपा की हार में पीछे होमवर्क की कमी रही। वार्ड परिसीमन से लेकर आरक्षण तक भाजपा ने कोई होमवर्क नहीं किया। अमर उजाला ने वार्ड परिसीमन होने के बाद ही आगाह कर दिया था कि यह परिसीमन सपा सहित अन्य विपक्षी दलों के पक्ष में जा रहा है। इसके बाद रही सही कसर आरक्षण ने पूरी कर दी। इसके बाद जब प्रत्याशी चयनित हुए तो तमाम दबावों को स्वीकार कर मान्यता प्राप्त प्रत्याशियों को दरकिनार कर दिया गया।

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