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Story: मेरा मन और कलेजा दोनो आग की तरह जल रहा था

Husband ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए थे, हम संभोग रस में डूबने ही वाले थे तभी दरवाजे पर खट खट की आवाज। आई, 

मन में बहुत गुस्सा हुई " आखिर किसे मौत आ रही इस समय "

झल्लाते हुए मैंने बोला कौन , 

आवाज आई बेटा बाहर आओ 


ये मेरी सासू मां थी, जल्दी जल्दी कपड़े पहने और बाहर निकल आई, 


मां ने बोला की बाहर कुछ लोग मुंह दिखाई करने आए हैं  जल्दी से बाल ठीक कर के आजाओ 


मेरा मन और कलेजा दोनो आग की तरह जल रहा था 


पर कर भी क्या सकती थी मेरी शादी नई नई हुई थी, 

बे मन से जाके सबके पैर छुए और आशीर्वाद लिया 


लेकिन ये सिलसिला रुका नहीं, मेरे पति की नाइट शिफ्ट ड्यूटी रहती रात भर वो ऑफिस रहते लेकिन मेरे मन में तो प्रेम की ज्वाला जल ही रही थी 


एक ही समय होता था हमारे समागम का वो भी दोपहर में खाने के बाद जब वो सोने जाते 

लेकिन उसमे भी कुछ ना कुछ काम पकड़ा दिया जाता 


इन सब बातो से मन बेचैन रहता और उसका असर मेरे बिहेवियर पर साफ दिखने लगा था, 


मेरी सास वैसे तो अच्छी थी पर जब किसी काम में गलती निकालती तो मेरे खून में उबाल आजाता फल स्वरूप मैने अपने पति से बोला की अब यहां नही रहना 


उन्होंने पूछा तो मानने बताया मुझे भी मेरा पर्सनल स्पेस चाहिए, हमारे बीच कुछ हो नहीं पाता, काम करूं तो मां कुछ न कुछ दिक्कत कर देती हैं 


मेरे पति ने बोला इसकी जरूरत नहीं है जल्दी में बात कर के डे शिफ्ट ले लूंगा पर मैने उनकी बात नही सुनी और बोला मुझे नही रहना 


इसके बाद पतिदेव ने मेरी बात मानी और अपना ट्रांसफर बैंगलोर करा लिया 


एक नया घर, नई जिंदगी की शुरुवात, ऐसा लग रहा था जैसे मानो पिंजड़े में से आजाद हो गई हूं, 

धीरे धीरे बंगलोर में सबसे पहले संभोग समस्या का हल निकाला गया 

क्यों की ये एक स्त्री के लिए उतना ही जरूरी है जितना किसी इंसान के लिए पानी, 


फिर मैने गृहमहस्ती बसाई, बरतन धोने की मशीन, कपड़े धोने की मशीन हर तरह की सुख सुविधा की मैने 

शुरुवाती जीवन तो अच्छा कट रहा था, लेकिन 2 साल बीतने के बाद जिंदगी में एक उदासीनता आने लगी, 


घर में सारी सुख सुविधा होते हुए भी एशिया लगता था की जिंदगी खोखली है और अब बंगलोर में 3 साल हो गया था रहते रहते 


सोसाइटी में दोस्त तो बहुत बन गए थे, लेकिन उन दोस्तों से असल दोस्ती वाली फीलिंग ही नही आती थी 

जैसा की जिसे अपना समझ के दुख बाटा जा सके 


एक दिन खाने के दौरान पतिदेव बोले की 1 महीने के लिए मां आना चाहती हैं और मैने उनकी टिकट करा दी है 


अंदर से तो बुरा लगा की यार फिर से पिंजड़े में बंद रहना पड़ेगा लेकिन इसपर मैं कुछ बोल भी नहीं सकती थी 


मां आई मैंने उन्हें सब बताया की घर में क्या क्या है मशीन कैसे काम करती हैं पर उन्हें कुछ पल्ले नहीं पड़ा और वो वहां से बिना कुछ समझे चली गई 


1 हफ्ते तो मां ने जैसे तैसे काट लिए, और फिर बोली 

बहु जब तक मैं हूं तुम एक धोबी का और एक बर्तन धोने वाले का इंतजाम कर दो क्यों की तुम्हारे मशीन से धुले बरतन और कपड़े मुझे सही नही लगते 


और हमने ऐसा किया, धोबी और दाई दोनो रखे गए, 

सुबह दाई आजाति, सास और दाई दोनो मिलकर गप्पे मारते 

कभी मैं भी गप्पे का हिस्सा बन जाती कभी मुझे बहुत बुरा लगता जब वो जाति तो दोपहर में धोबिन आती उसके साथ भी यही होता 


धीरे धीरे करते 1 महिना बीता और sasu मां के वापस जाने का समय था, उसी दिन धोबी और दाई की विदाई कर दी, जाते जाते मां ने दोनो को 100 100 रुपए एक्स्ट्रा दिए और बोला बहु को जरूरत पड़े तो ध्यान रखना अकेले रहती है 


मां चली गईं धोबिन गई दाई गई, पति देव ऑफिस गए मैने चैन की सांस ली और बोला चलो आजादी मिली 


लेकिन 2 3 दिन बाद घर खाली लगने लगा, 2 हफ्ते बाद फिर उदासीनता और अकेला पन लगने लगा था,


ये वो पल था जब मुझे समझ आया की घर में सभी सुख सुविधा होने के बाद भी खुशी क्यों नहीं मिलती 

उसका कारण यही था, क्यों की घर में कोई अपना कहने वाला नही था 


मैने अपने पति से बोला की मैं वापस जाना चाहती हूं 

मुझे समझ आया है की अपनों के बीच में रहना कितना अच्छा है 

और अब मैं वापस जाना चाहती हूं 


आज मैं 3 साल से सास ससुर के साथ में हूं, और मुझे इस बात की खुशी है की मैं अब अपनो के साथ में हूं 


मेरी तरह ना जाने कितनी लड़किया हैं जो घर से दूर। सास ससुर से दूर रहना चाहती हैं और रहती भी हैं 

लेकिन एक बात 100% सच भी है वो ये की वो अंदर से कुश नही होती हैं

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